लखनऊ: पद्मश्री इतिहासकार को सांस लेने में तकलीफ, दो घंटे बाद आयी एंबुलेंस, निधन

 | 

न्‍यूज टुडे नेटवर्क। राजधानी लखनऊ के मशहूर इतिहासकार पद्मश्री डाक्‍टर योगेश प्रवीण का सोमवार दोपहर निधन हो गया। दोपहर में उन्‍हें सांस लेने में तकलीफ हुयी एंबुलेंस को फोन किया गया लेकिन दो घंटे तक एंबुलेंस उन्‍हें लेने नहीं आयी। जब तक एंबुलेंस आयी उनका दम उखड़ चुका था। करीब डेढ़ बजे उन्हें सांस लेने में तकलीफ ज्यादा होने लगी। एंबुलेंस को बुलाया गया। लेकिन करीब 2 घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची। इसके बाद उन्हें बलरामपुर अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। योगेश प्रवीण के निधन से साहित्य जगत में मायूसी छा गई है।

इतिहासकार डॉक्टर योगेश प्रवीण को साल 2020 में गणतंत्र दिवस की संध्या पर पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था। पद्मश्री सम्मान पाने के बाद जब उनसे पूछा गया कि आपने लखनऊ के बारे में बहुत कुछ लिखा तब उन्होंने जवाब दिया था कि, मैंने लखनऊ को नहीं लखनऊ ने मुझे लिखा है। उन्होंने लखनऊ शहर के इतिहास और संस्कृति के अलावा अवध के रंगमंच पर 25 से अधिक किताबें लिखी हैं।

28 अक्टूबर 1938 को हुआ था जन्म

लखनऊ के रकाबगंज के पाण्डेयगंज की तंग गलियों में योगेश प्रवीण का जन्म 28 अक्टूबर 1938 को पीली कोठी पंचवटी में हुआ था। योगेश प्रवीण की चर्चा एक ऐसे इतिहासकार के रूप में हुई है, जिन्होंने सिर्फ लखनऊ के बारे में ही लिखा है। उनकी किताबों में यह लक्ष्मण की नगरी है तो नवाबों ने यहां की शाम में रुमानियत पैदा की। बताया जाता है कि योगेश के ऊपर भी कई लोगों ने रिसर्च किया है। बहरहाल, लखनऊ के लाडले योगेश प्रवीण की मृत्यु से पूरा शहर गमगीन हो उठा है। योगेश प्रवीण की लखनऊ को लेकर कृति-

लखनऊ है तो महज गुम्बदों मीनार नही
सिर्फ एक शहर नही कूच ओ बाजार नही।
इसके आंचल में मोहब्बत के फूल खिलते हैं
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं।।

हिंदी, उर्दू अंग्रेजी, बंगला, अवधि के भाषा में महारत योगेश प्रवीन लखनऊ की पहचान माने जाते हैं। उन्होंने करीब दो दर्जन से ज्यादा किताबें लिखी हैं। उन्होंने दास्तान ए आवाज, साहिबे आलम, कंगन के कटार, दस्ताने लखनऊ बहारें अवध जैसी किताबें आज भी लखनऊ की पहचान हैं।