भू-कानून और मूल निवास की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर जा रहे थे युवा, पुलिस ने रोका, शहीद स्मारक पर फोर्स तैनात
देहरादून - उत्तराखंड में भूमि कानून और मूल निवासियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए चल रहे आंदोलन दिन प्रतिदिन विशाल रूप ले रहा है, सशक्त भू-कानून और मूल निवास की मांग को लेकर आमरण अनशन करने की तैयारी में मूल निवास, भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी को पुलिस ने रोक दिया। पुलिस ने शहीद स्मारक के गेट पर ताला भी लगा दिया है। मोहित ने निर्णय लिया है कि वह शहीद स्मारक के गेट के बाहर ही भूख हड़ताल शुरू करेंगे।
मोहित डिमरी द्वारा भू-कानून में संशोधन रद्द करने, निवेश के नाम पर दी गई जमीनों का ब्यौरा सार्वजनिक करने और मूल निवासियों के अधिकार सुनिश्चित करने की मांगें राज्य के भविष्य और स्थायी विकास के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार मजबूत भू-कानून को लेकर गंभीर नहीं है। सरकार बजट सत्र में भू-कानून लाने की बात कर रही है, लेकिन किस तरह का भू-कानून सरकार लाएगी, स्थिति स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि 2018 के बाद भूमि कानूनों में हुए सभी संशोधनों को अध्यादेश के जरिये रद्द किया जाय।
400 से अधिक गांव नगरीय क्षेत्र में हुए शामिल
भूमि कानून की धारा-2 को हटाया जाए। इस धारा की वजह से नगरीय क्षेत्रों में गांवों के शामिल होने से कृषि भूमि खत्म हो रही है। 400 से अधिक गांव नगरीय क्षेत्र में शामिल हुए हैं और 50 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि को खुर्द-बुर्द करने का रास्ता खोल दिया गया। साथ ही भूमि कानून के बिल को विधानसभा में पारित करने से पूर्व इसके ड्राफ्ट को जन समीक्षा के लिए सार्वजनिक किया जाए।
निवेश के नाम पर दी गई जमीनों का ब्यौरा और इससे मिले रोजगार को सार्वजनिक किया जाय। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन खरीदी है, उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाय। समिति ने कहा कि मूल निवासियों को चिह्नित किया जाए। वहीं, 90 प्रतिशत नौकरियों और सरकारी योजनाओं में मूल निवासियों की भागीदारी होनी चाहिए। यह आंदोलन न केवल भूमि कानूनों के मुद्दे को उठाता है, बल्कि मूल निवासियों के अस्तित्व, रोजगार, और संसाधनों पर भी गहरी चिंता व्यक्त करता है। यह देखना होगा कि राज्य सरकार इस पर क्या कदम उठाती है। बातचीत और समाधान की दिशा में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।