देहरादून- पूर्व सीएम त्रिवेंद के प्रोत्साहन से चमक रहा नम्रता का स्टार्टअप, यहां होम स्टे तैयार कर रही पहाड़ की बेटी

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देहरादून-उत्तराखंड में जन्मी, लेकिन शुरू से ही दिल्ली में पली-बढ़ी आर्किटेक्ट नम्रता कंडवाल इन दिनों पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर क्षेत्र स्थित पैतृक गांव फल्दा कोट मल्ला में भारत का पहला हेम्पक्रीट होमस्टे तैयार करने में जुटी हैं। अपनी जड़ों से जुड़कर उत्तराखंड में वह विश्व की सबसे अच्छी हेम्प इंडस्ट्री की स्थापना का लक्ष्य लेकर काम कर रही हैं। वह अपने स्टार्टअप को इस मुकाम तक ले जाना चाहती हैं कि वह विश्व की अग्रण्य हेम्प कंपनी खड़ी कर सके। नम्रता को प्रोत्साहित करने में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का बड़ा हाथ रहा है, जिन्होंने नम्रता के पैतृक गांव में आटोमेटिक संयत्र की स्थापना के लिए दस लाख की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। अपनी सफलता में परिजनों और गुरूजनों के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के योगदान की नम्रता खास तौर पर चर्चा करती है। जाहिर तौर पर यह एक छोटा सा उदाहरण है, जिसमें त्रिवेंद्र सरकार में किस तरह से युवाओं को अपनी मिट्टी से जुड़कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया।

नम्रता कुछ समय पहले तक दिल्ली में ग्रीन बिल्डिंग्स में आर्किटेक्ट के पद पर काम कर रही थीं। दिल्ली में रहकर ही उन्होंने अपनी टीम के साथ सस्टेनेबल बिल्डिंग मैटेरियल्स पर रिसर्च करना शुरू किया। इस दौरान उन्हें पता चला की उत्तराखंड में जो हेम्प का पौधा स्वतः ही यहाँ-वहाँ उग जाता है और गढ़वाल में जिसे गाली भी माना जाता है, उससे दुनिया भर में हजारों उत्पाद बनाये जा रहे हैं। ग्रीन बिल्डिंग इंसुलेशन मटेरियल भी इसी से तैयार किया जा रहा है। यह युवा आर्किटेक्ट इंडस्ट्रियल हेम्प पर अपना रिसर्च प्रोजेक्ट लेकर अपने पैतृक गांव आ गईं। आज नम्रता को मध्य-प्रदेश मूल के अपने पति गौरव दीक्षित के साथ गाँव में रहते हुए तीन साल हो चुके हैं। गौरव भी पेशे से आर्किटेक्ट हैं और नम्रता के रिसर्च पार्टनर भी हैं। 

उत्तराखंड आकर नम्रता ने देखा कि लोग इस पौधे को केवल नशे से जोड़कर देखते हैं। इसके औद्योगिक उपयोगों के बारे में उनकी जानकारी सीमित हैं। इसलिए नम्रता ने स्टाल और कार्यशालाओं के माध्यम से लोगों को हेम्प के बारे में जागरूक करना शुरू किया। पौड़ी के गवानी में आयोजित मेले में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने उनके स्टाल को देखा और उनके काम की सराहना की। त्रिवेन्द्र जी ने नम्रता को उत्तराखंड सरकार की ओर से हर संभव सहायता करने का वचन भी दिया।  

इस दौरान नम्रता के स्टार्टअप गो हेम्प एग्रोवेंचर्स ने हेम्प के रेशे, लकड़ी एवं चूने आधारित मिनरल बाइंडर के मिश्रण से एक सस्टेनेबल बिल्डिंग इंसुलेशन मटेरियल बनाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। साथ ही उन्होंने हेम्प से कागज, हेम्प के बीज से तेल एवं सौंदर्य उत्पादों का भी सफल ट्रायल रन किया। नम्रता का कहना है कि हेम्प से ऐसे कई उत्पाद बन सकते हैं, जिसमे छोटे से सेटअप में भी युवा अच्छी कमाई कर सकते हैं। इस दौरान उनका अनुभव रहा कि कागज, कपडा, बायो प्लास्टिक एवं बिल्डिंग मटेरियल बनाने में प्रयोग होने वाले हेम्प के रेशे को निकालने वाला पारंपरिक तरीका बहुत ही अधिक समय लेता है और इसे उन क्षेत्रों में नहीं किया जा सकता, जहाँ पानी की कमी हो। ऐसे में नम्रता ने टेक्नोलॉजी का उपयोग करना उचित समझा. 

नम्रता ने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से निवेदन किया। त्रिवेंद्र जी ने उनके आईडिया को समझकर और अपना वादा निभाते हुए उन्हें मशीन लाने के लिए दस लाख रुपये की ग्रांट प्रदान की। ऐसे आटोमेटिक संयन्त्र यूरोप के देशों में उपलब्ध थे, परन्तु उनकी कीमत करोड़ों में थी। चीन में निर्मित सस्ती मशीन हिमालय के हेम्प पौधे के अनुकूल नहीं थी। यह जानकार नम्रता की टीम ने भारत में ही निर्मित मशीन की खोज शुरू की। उस समय भारत में ऐसी कोई भी टेक्नोलॉजी एवं मशीन उपलब्ध नहीं थी, तब दक्षिण भारत में हेम्प पर ही रिसर्च कर रही ‘नम्रता हेम्प कंपनी’ के माध्यम से स्वदेशी टेक्नोलॉजी पर आधारित भारत की पहली हेम्प डीकोर्टीकेटर’ को बनाया गया। इस मशीन को विकसित करने में नम्रता हेम्प कंपनी को दो साल लगे। अंततः अप्रैल २०२१ में  भारत की पहली मशीन उत्तराखंड प्रदेश में स्टार्टअप ‘गो हेम्प एग्रो’ के स्तर पर लाई गई।

नम्रता के मुताबिक यह मशीन उत्तराखंड एवं पूरे भारत की हेम्प इंडस्ट्री के लिए मील का पत्थर साबित होगी। वर्तमान में अत्यधिक मात्र में हेम्प की फसल होने के बावजूद भारत में एक्सट्रैक्शन टेक्नोलॉजी के अभाव में उसका समुचित दोहन नहीं हो पाता है और विश्व का सबसे मजबूत प्राकृतिक रेशा हर साल वेस्ट हो जाता है। हर वर्ष भारत कई सौ करोड़ के हेम्प के रेशे एवं कपडे से बने उत्पादों का चीन, नेपाल एवं यूरोपियन देशों से आयात करता है। ये सारे उत्पाद हमारे प्रदेश में भी बन सकते हैं और कमाई का जरिया हो सकते हैं। रेशे को निकालने के बाद बची लकड़ी, जिसको आज किसान जला देता है, इस मशीन में स्वतः ही उसके टुकड़े हो जाते हैं, जिसमें गो हेम्प द्वारा निर्मित चूने के बाइंडर को मिलकर एक अद्भुत बिल्डिंग मटेरियल तैयार होता है। यह एक प्राचीन भारतीय तकनीक भी है। इसका प्रयोग पुरातत्व विभाग को एलोरा की गुफाओं में भी देखने मिला है। आज विश्व भर में हेम्पक्रीट टेक्नोलॉजी से सस्टेनेबल बिल्डिंग्स का निर्माण हो रहा है और ऐसे में हेम्प के पौधे का मूल स्थान भारत क्यों पीछे रहे।

नम्रता की टीम की बिल्डिंग मटेरियल पर रिसर्च के लिए इस वर्ष एक जनवरी को उन्हें प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ‘ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज’ का विजेता भी घोषित किया गया। अब गो हेम्प एग्रोवेंचर्स स्टार्टअप, भारत सरकार के ‘मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग’ के साथ इस हेम्प कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी को जन सुलभ बनाने एवं प्रचलन में लाने हेतु काम कर रहा है। वर्तमान में नम्रता अपनी इस टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन करते हुए अपने पैतृक गाँव फल्दाकोट मल्ला में भारत का पहला ‘हेम्पक्रीट होमस्टे’ भी बना रही है। नम्रता का मानना है कि हेम्प उत्तराखंड के लिए सबसे उपयुक्त फसल है। इसके सदुपयोग से हम प्रदेश और देश के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। अपनी इन उपलब्धियों का श्रेय नम्रता अपने परिवार, गुरुजनों, और उत्तराखंड प्रदेश को देती हैं। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेद्र सिंह रावत के सहयोग को नम्रता खास तौर पर रेखांकित करती है। नम्रता का कहना है कि त्रिवेन्द्र जी के युवाओं पर विश्वास से उन्हें बल मिला। कई परेशानियां आई और त्रिवेन्द्र जी ने आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया। नम्रता का कहना है कि प्रदेश सरकार के हर विभाग के सहयोग से ही उनकी रिसर्च आज इस मुकाम तक पहुँच पाई है। वर्ष २०२० में गोहेम्प एग्रोवेंचर्स को नेपाल में आयोजित एशियन हेम्प समिट में अपनी रिसर्च के लिए सर्वश्रेष्ठ हेम्प उद्यमी का भी पुरूस्कार भी मिल चुका है।