क्या मार्टिन लूथर किंग का सपना साकार हुआ?

बीजिंग, 15 जनवरी (आईएएनएस)। बचपन में मैंने मेरा एक सपना है नामक एक अंग्रेजी लेख का पाठ किया। यह 28 अगस्त, 1963 को वाशिंगटन के लिंकन मेमोरियल में अमेरिका के अश्वेत नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर किंग द्वारा दिया गया एक स्मारक भाषण था। इस तरह मैं इस उत्कृष्ट अश्वेत नेता के बारे में जान पाया। उन्होंने अपना जीवन अहिंसक तरीकों से नस्लीय समानता की खोज के लिये समर्पित कर दिया। उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला। हर वर्ष के जनवरी में तीसरे सोमवार को मार्टिन लूथर किंग दिवस मनाया जाता है। ध्यानाकर्षक बात यह है कि यह अमेरिका में अश्वेत अमेरिका को सम्मानित करने वाला एकमात्र दिवस है।
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क्या मार्टिन लूथर किंग का सपना साकार हुआ? बीजिंग, 15 जनवरी (आईएएनएस)। बचपन में मैंने मेरा एक सपना है नामक एक अंग्रेजी लेख का पाठ किया। यह 28 अगस्त, 1963 को वाशिंगटन के लिंकन मेमोरियल में अमेरिका के अश्वेत नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर किंग द्वारा दिया गया एक स्मारक भाषण था। इस तरह मैं इस उत्कृष्ट अश्वेत नेता के बारे में जान पाया। उन्होंने अपना जीवन अहिंसक तरीकों से नस्लीय समानता की खोज के लिये समर्पित कर दिया। उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला। हर वर्ष के जनवरी में तीसरे सोमवार को मार्टिन लूथर किंग दिवस मनाया जाता है। ध्यानाकर्षक बात यह है कि यह अमेरिका में अश्वेत अमेरिका को सम्मानित करने वाला एकमात्र दिवस है।

क्योंकि मार्टिन लूथर किंग की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी, 39 वर्ष की आयु में नस्लवादियों ने उनकी हत्या कर दी थी। इसलिये उन्होंने अपनी आंखों से अपना सपना साकार होने का दिन नहीं देखा। शायद उनके मन में हमेशा यह सवाल उठता होगा कि आज तक क्या मेरा सपना साकार हो पाया? तो इस रिपोर्ट में हम समय की यात्रा करके उनके साथ एक संवाद करेंगे और उनके सवाल का जवाब देंगे।

लेखक मार्टिन लूथर किंग, आपका भाषण मेरा एक सपना है बहुत अच्छा लगा। अभी तक लोगों को इसकी याद है। क्या आप इस भाषण देने की पृष्ठभूमि का परिचय दे सकते हैं?

मार्टिन लूथर किंग: हां, जरूर। यह एक भाषण है, जो मैंने अमेरिका में लंबे समय से नस्लीय भेदभाव और अश्वेतों के उत्पीड़न की पृष्ठभूमि में अश्वेतों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष को बढ़ावा देने के लिए दिया था। वर्ष 1862 में अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने मुक्ति उद्घोषणा जारी की। हालांकि इसने विशाल अश्वेत गुलामों के लिये आशा की किरण लायी। लेकिन इसे जारी होने के बाद सौ वर्ष का समय बीत चुका है, अश्वेत गुलामों की दुखद स्थिति नहीं बदली। इसलिये मैंने लोगों को यह वास्तविकता बताने के लिये यह भाषण दिया। साथ ही मैंने अपने भाषण में एक ऐसे आदर्श समाज का वर्ण भी किया, वहां अश्वेत और गोरे लोग हाथ में हाथ डालकर आगे बढ़ सकेंगे। अब मैं बेसब्री से यह जानना चाहता हूं कि क्या मेरा सपना पूरा हो गया है?

लेखक: खेद की बात है कि शायद अभी तक पूरा नहीं हुआ है। आपके भाषण में यह कहा गया था कि जब तक अश्वेत पुलिस की क्रूरता से पीड़ित रहेंगे, तब तक हम कभी संतुष्ट नहीं होंगे। पर देखिए कि वर्ष 2020 के 25 मई को अमेरिकी श्वेत पुलिस द्वारा हिंसक कानून कार्यान्वयन के कारण अश्वेत नागरिक जॉर्ज ़फ्लॉइड की मृत्यु हो गयी। जिससे बड़े पैमाने पर विरोध और प्रदर्शन भी शुरू हो गये। बहुत लोगों ने प्रदर्शन के दौरान समानता और सम्मान के बैनर उठाकर अमेरिकी समाज व सरकार से विभिन्न नस्लीय लोगों का समान व्यवहार करने का आह्वान किया। यह देखा जा सकता है कि अमेरिका में अश्वेत समूहों के खिलाफ पुलिस का हिंसक कानून कार्यान्वयन कोई नयी बात नहीं है, यहां तक कि वह एक सामान्य स्थिति बन गया है।

मार्टिन लूथर किंग: यह सुनकर मेरे दिल में बहुत दर्द होता है। आइये हम इस विषय को छोड़कर कुछ और बातें करें। मेरे युग में नस्लीय भेदभाव के तले अश्वेत लोगों के जीवन पर अत्याचार किया जाता था। वे एक निर्वासित की तरह अमेरिकी समाज के एक कोने में छिप गये। हालांकि बाहर की दुनिया समृद्ध समुद्र जैसी है, लेकिन वे केवल एक गरीब द्विप पर रहते थे। तो क्या आज के अमेरिकी समाज में अश्वेत लोगों की स्थिति सुधर गयी है?

लेखक: शायद मेरा जवाब आपको फिर से निराश कर सकता है। अमेरिकी समाज में, अश्वेतों के लिए राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, रोजगार, निवास और अन्य पहलुओं में गोरों के समान व्यवहार का आनंद लेना मुश्किल है। वे अमेरिकी समाज में सबसे नीचे हैं और उन्हें लगातार बेरोजगारी, गरीबी और मौत का खतरा है। हो सकता है कि कुछ विशिष्ट आंकड़ों से आप बेहतर ढंग से इसे समझ सकें। उदाहरण के लिये गोरों की तुलना में अश्वेतों की बेरोजगारी दर तीन गुना है। गोरों की औसत संपत्ति शायद अश्वेतों की तुलना में 10 गुना अधिक है। अमेरिका में केवल 45 प्रतिशत अश्वेत आबादी के पास ही रहने को घर हैं, और अधिकतर अश्वेत अभी भी झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं।

मार्टिन लूथर किंग: बस, बस, आगे मत कहो। ऐसा लगता है कि अमेरिका में मेरे सपने को साकार करने में और ज्यादा समय लगेगा, अब मैं सिर्फ़ लेटकर सोना चाहता हूं।

(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

--आईएएनएस

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