न्यायिक आदेश से सरकार के अधिकार को खत्म नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 17 मार्च (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा शीर्ष अदालत को आवंटित 1.33 एकड़ भूमि को वकीलों के कक्षों के निर्माण के लिए परिवर्तित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को यह संकेत नहीं जाना चाहिए कि अदालत न्यायिक आदेश पारित कर उसके अधिकार को खत्म कर सकती है।
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नई दिल्ली, 17 मार्च (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा शीर्ष अदालत को आवंटित 1.33 एकड़ भूमि को वकीलों के कक्षों के निर्माण के लिए परिवर्तित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को यह संकेत नहीं जाना चाहिए कि अदालत न्यायिक आदेश पारित कर उसके अधिकार को खत्म कर सकती है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस.के. कौल और पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि वह सरकार के समक्ष वकीलों के चैंबर के लिए भूमि आवंटन का मुद्दा उठाएंगे।

पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता और एससीबीए के अध्यक्ष विकास सिंह से सवाल किया कि अदालत कक्षों के आवंटन के लिए भूमि को अपने कब्जे में लेने का आदेश कैसे दे सकती है? वकील हमारा हिस्सा हैं, लेकिन क्या हम अपने लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी न्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल कर सकते हैं?

पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि शीर्ष अदालत अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी न्यायिक शक्तियों का प्रयोग कर रही है।

सिंह ने कहा कि शीर्ष अदालत चारों तरफ से सड़कों से घिरी हुई है, परिसर के भीतर के अलावा बढ़ने का कोई रास्ता नहीं है, और अदालत परिसर के लिए भविष्य की योजना की आवश्यकता है और अदालत से याचिका पर नोटिस जारी करने का आग्रह किया, ताकि चर्चा शुरू हो सके। यह बताया गया कि अदालत के करीब एक इमारत को बेदखली के आदेश मिले हैं, और उन्हें दूसरी जमीन मिली है।

पीठ ने पूछा कि वह न्यायिक रूप से सभी इमारतों को कैसे अपने कब्जे में ले सकती है, और कहा कि अदालत को वकीलों की आवश्यकता पर संदेह नहीं है, लेकिन अनुच्छेद 32 के तहत, वह इन इमारतों को कैसे अपने कब्जे में ले सकती है? पीठ ने कहा, सरकार के साथ प्रशासनिक पक्ष पर इसे उठाने के लिए हमें अदालत पर भरोसा करना चाहिए। सरकार को यह संकेत नहीं जाना चाहिए कि हम न्यायिक आदेश पारित करके उनके अधिकार को खत्म कर सकते हैं।

सिंह ने मामले में नोटिस जारी करने के लिए दबाव डाला और कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय विस्तार भूमि पर कब्जा कर लिया गया था। खंडपीठ ने जवाब दिया कि यह प्रशासनिक रूप से किया गया था। सिंह ने अपनी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि बार और अन्य हितधारक इस तरह के प्रशासनिक परामर्श का हिस्सा नहीं होंगे।

पीठ ने कहा कि ई-कोर्ट परियोजना के लिए सरकार ने 7,000 करोड़ रुपये आवंटित किए, क्योंकि हमें इसकी आवश्यकता है, और सरकार प्रशासनिक पक्ष में शीर्ष अदालत के साथ संलग्न है और वकीलों के कक्षों के मुद्दे को इसमें रखा जा सकता है।

पूरे बार की ओर से बेंच को धन्यवाद देते हुए, सिंह ने कहा कि पूरा बार संस्थान के साथ है और इस मामले में जो कुछ भी होता है उसके बावजूद हम संस्थान की महिमा को कम करने के लिए कुछ भी नहीं करेंगे।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के वकील ने दलील दी कि बार बॉडी के लिए जगह की जरूरत है और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने भी कार्यवाही का हिस्सा बनने और इस मुद्दे में हस्तक्षेप करने की मांग की।

अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि प्रशासनिक पक्ष का लचीलापन निश्चित रूप से मामले को सुलझाने में मददगार होगा। दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।

--आईएएनएस

सीबीटी

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