आज मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप माता ब्रम्हचारिणी की होगी पूजा, ये है बीजमंत्र और पूजा विधि
न्यूज टुडे नेटवर्क। विक्रम संवत 2078 द्वितीय दिवस बुधवार आदिशक्ति माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने कार्य में सदैव विजय की प्राप्ति होती है मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली है ,माता की भक्ति से व्यक्ति के अंदर तप की शक्ति त्याग सदाचार संयम और बैराग जैसे गुणों में वृद्धि होती है।
माता ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र
ब्रह्मचारिणी हिम् श्री अंबिकाऐ नमः
मां का स्वरूप
देवी पुराण के अध्याय 45 के अनुसार मां के स्वरूप के वर्णन की बात कहें तो यह मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप उस देवी का है जिसने भगवान शिव को अपने पति से रूप में पाने के लिए कठोर तप किया है जिस कारण से इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा मां ब्रह्मचारिणी सरल स्वभाव की हैं इनके दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है l
मां की कथा
इनकी कथा के रूप में मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया नारद जी की सलाह पर इन्होंने कठिन तप किया ताकि वे भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकें कठोर तप के कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा आराधना के दौरान इन्होंने 1000 वर्ष तक केवल फल फूल खाए और 100 बरस तक शाक खाकर जीवित रही कठोर तप से इनका शरीर अत्यंत क्षीण हो गया उनका तप देखकर सभी देवता ऋषि मुनि अत्यंत प्रभावित हुए और उनको मनोकामना पूर्ण होने का वचन दिया l
ये है मां ब्रम्हचारिणी की पूजा विधि
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और
प्रार्थना करते हुए नीचे लिखा मंत्र बोलें।
श्लोक
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु| देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें।
देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं।
इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं और इन मंत्रों से प्रार्थना करें।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
इसके बाद देवी मां को प्रसाद चढ़ाएं और आचमन करवाएं। प्रसाद के बाद पान सुपारी भेंट करें और प्रदक्षिणा करें यानी 3 बार अपनी ही जगह खड़े होकर घूमें। प्रदक्षिणा के बाद घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। इन सबके बाद क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद बांट दें।
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।