पीएमबीजेपी : देश में अब सिंगल ब्रांड ‘भारत’ नाम से बेचे जाएंगे यूरिया-डीएपी
अक्टूबर से देश में लागू होगी ‘वन नेशन वन फर्टिलाइजर स्कीम’, प्रधानमंत्री जन उर्वरक परियोजना को लेकर सरकारी ने जारी किए दिशा-निर्देश
-खाद की बोरी पर दो तिहाई हिस्से में होगा भारत ब्रांड व PMBJP का लोगो
-बोरी के एक तिहाई हिस्से पर अपना नाम व अपना लोगो दे सकेंगी कंपनियां
न्यूज नेटवर्क टुडे/ देश में सब्सिडी पर दी जाने वाली खाद को लेकर केन्द्र सरकार एक देश एक उर्वरक योजना लागू करने जा रही है। प्रधानमंत्री भारतीय जनउर्वरक परियोजना (PMBJP) के तहत देश के किसी भी हिस्से में डीएपी-यूरिया आदि खादें सिंगल ब्रांड ‘भारत’ के नाम से बेची जा सकेंगी। खास बात ये है कि खादी की बोरिया के दो तिहाई हिस्से में भारत ब्रांड के साथ PMBJP का लोगो नजर आएगा, जबकि एक बोरी के एक तिहाई हिस्से में कंपनियां अपना नाम और अपना लोगो इस्तेमाल कर सकेंगी।
सरकार ने पूरे देश में वन नेशन वन फर्टिलाइजर को लागू करने की तैयारी कर ली है। केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने इसके लिए सभी कंपनियों को जरूरी दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं। कंपनियों को खाद की बोरियों का पब्लशिंग फार्मेट भी मंत्रालय ने उपलब्ध करा दिया है। सरकार का मानना है कि इस फैसले से यूरिया और डीएपी की कहीं भी कमी नहीं होगी और माल ढुलाई सब्सिडी की लागत भी कम होगी। केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने मीडिया को बताया है कि प्रधानमंत्री भारतीय जनउर्वरक परियोजना (PMBJP) के तहत 'एक राष्ट्र एक उर्वरक' पहल की शुरुआत की जा रही हहै। अक्टूबर से सब्सिडी वाले सभी उर्वरकों को 'भारत' ब्रांड के तहत ही बेचा जा सकेगा। भले ही यह व्यवस्था अक्टूबर से शुरू की जानी है मगर उर्वरक कंपनियों को अपना मौजूदा स्टॉक बेचने के लिए दिसंबर के अंत तक का समय दिया गया है।
सरकार ने वित्त वर्ष (2021-22) में 1.62 लाख करोड़ रुपए की उर्वरक सब्सिडी दी थी। पिछले पांच महीनों में उर्वरकों के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़ने से चालू वित्त वर्ष में सरकार पर उर्वरक सब्सिडी का बोझ बढ़कर 2.25 लाख करोड़ रुपए होने की आशंका जताई गई है। वन नेशन वन फर्टिलाइजर लागू करने की वजह के बारे में बताया गया है कि सरकार यूरिया के खुदरा मूल्य के 80 फीसदी की सब्सिडी देती है। ऐसे ही डीएपी की कीमत का 65 फीसदी, एनपीके की कीमत का 55 फीसदी और पोटाश की कीमत का 31 फीसदी सरकार सब्सिडी के तौर पर प्रदान करती है। इसके अलावा उर्वरकों की ढुलाई पर भी सालाना छह हजार से नौ हजार करोड़ रुपये तक खर्च होते हैं। फिलहाल कंपनियां अलग-अलग नाम से ये उर्वरक बेचती हैं, लेकिन इन्हें एक से दूसरे राज्य में भेजने पर न सिर्फ ढुलाई लागत बढ़ती है, बल्कि किसानों को समय पर उपलब्ध कराने में भी समस्या आती है। इसी परेशानी को दूर करने के लिए अब एक ब्रांड के तहत सब्सिडी वाली उर्वरक बनाई जाएगी।