1965 में पीएम शास्त्री के वजन 64.6 किलो के बराबर दान किया सोना सरकार के हवाले

जयपुर, 15 सितंबर (आईएएनएस)। सन् 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के मद्देनजर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तौलकर उनके वजन के बराबर 64.6 किलोग्राम सोना तत्कालीन जिला कलेक्टर को दिया गया गया था। अदालत के आदेश के बाद उदयपुर जिला प्रशासन द्वारा आखिरकार सीजीएसटी को सौंप दिया गया है। इस सोने की कीमत करीब 32 करोड़ रुपये है।
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1965 में पीएम शास्त्री के वजन 64.6 किलो के बराबर दान किया सोना सरकार के हवाले जयपुर, 15 सितंबर (आईएएनएस)। सन् 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के मद्देनजर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तौलकर उनके वजन के बराबर 64.6 किलोग्राम सोना तत्कालीन जिला कलेक्टर को दिया गया गया था। अदालत के आदेश के बाद उदयपुर जिला प्रशासन द्वारा आखिरकार सीजीएसटी को सौंप दिया गया है। इस सोने की कीमत करीब 32 करोड़ रुपये है।

सोने के स्वामित्व को लेकर विवाद 1965 के अंत का है, जब यह कीमती धातु चित्तौड़गढ़ जिला कलेक्टर को शास्त्री तौलने के लिए दी गई थी। तब से लेकर अब तक इस मामले की अलग-अलग अदालतों में पांच बार सुनवाई हो चुकी है और हर बार फैसला सरकार के पक्ष में गया।

दरअसल, विवाद इस बार भी खत्म नहीं हुआ, क्योंकि रिकॉर्ड में जिला प्रशासन के पास रखे 56.8 किलो सोने की एंट्री दिख रही थी। हालांकि वजन के दौरान यह 67.8 किलो निकला। पूरी प्रक्रिया के दौरान केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।

रिकॉर्ड में दर्ज से ज्यादा सोना मिलने पर कई सवाल खड़े हुए।

ऐसे में अधिवक्ता प्रवीण खंडेलवाल ने 1975 में अधिकारियों को दिए गए अदालती आदेश का हवाला दिया जिसमें साफ तौर पर कहा गया था कि शास्त्री तौल के लिए दिया गया पूरा सोना गोल्ड कंट्रोल ऑफिसर को सौंप दिया जाए। उन्होंने कहा कि चूंकि गोल्ड कंट्रोल ऑफिसर का पद मौजूद नहीं है और इसकी जगह सीजीएसटी टीम काम कर रही है, इसलिए सीजीएसटी के अधिकारियों को सोने की डिलीवरी कर दी गई है।

इस बीच 3.2 किलो वजन के सोने के बिस्किट का दस्तावेजों में अलग नंबर था और इसलिए जिला कलेक्टर ने इसे सीजीएसटी टीम को नहीं सौंपा है। बिस्किट पर जहां जी-2560 नंबर था, वहीं दस्तावेजों पर एम-2560 लिखा हुआ था। खंडेलवाल के मुताबिक, 3.2 किलो सोने के लिए कोर्ट में अर्जी दी जाएगी।

9 दिसंबर 1965 को गुणवंत नाम के व्यक्ति ने एक अन्य व्यक्ति गणपत और दो अन्य के खिलाफ मामला दर्ज कर आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे 56.86 किलो सोना वापस नहीं किया।

16 दिसंबर 1965 को गणपत ने चित्तौड़गढ़ कलेक्टर को शास्त्री को तौलने के लिए सोना सौंप दिया, जो उदयपुर का दौरा करने वाले थे। हालांकि, तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा आयोजित पाकिस्तान के साथ वार्ता के बाद जनवरी 1966 में शास्त्री का ताशकंद में निधन हो गया। इसके बाद पुलिस ने सोना जब्त कर लिया, लेकिन उसकी कस्टडी चित्तौड़गढ़ कलेक्टर को दे दी गई।

1969 में, उदयपुर में सहायक जिला सत्र न्यायालय में एक चालान पेश किया गया और फिर सोना उदयपुर लाया गया।

11 जनवरी, 1975 को अदालत ने गणपत और हीरालाल को दो साल कैद की सजा सुनाई और सोने पर अधिकार गोल्ड कंट्रोलर को दे दिया गया।

गणपत और हीरालाल ने सत्र न्यायालय में फैसले को चुनौती दी और उन्हें मुक्त कर दिया गया, लेकिन उन्हें सोने पर कब्जा करने का अधिकार वापस नहीं मिला।

उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ गुणवंत द्वारा फिर से एक याचिका दायर की गई, जिसने 14 सितंबर, 2007 को बरी करने के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन उन्हें सोने पर अधिकार हस्तांतरित करने की अपील को खारिज कर दिया।

2012 में गणपत के वारिस गोवर्धन ने कोर्ट में रिट दायर कर कहा था कि सोना उसके पिता का है और पुलिस ने उसे बरामद कर लिया है। हालांकि, यह रिट अभी भी लंबित है।

17 जुलाई, 2020 को सहायक आयुक्त, सीजीएसटी, चित्तौड़गढ़ ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में सोने की डिलीवरी के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया और 5 अगस्त, 2020 को अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सीजीएसटी अधिकारी को सोना की डिलीवरी के लिए निर्देश जारी किए हैं।

--आईएएनएस

एसजीके