बिहार में पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की बात करने वाले दलों की कमान सवर्णों को!
उल्लेखनीय है बिहार में हाल में ही राजद, जदयू के संगठनात्मक चुनाव के बाद अध्यक्ष का चुनाव हुआ है और कांग्रेस ने भी दो दिन पहले बिहार प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।
राजद का वोट बैंक मुस्लिम और यादव माना जाता रहा है, लेकिन बिहार में राजद की कमान राजपूत जाति से आने वाले जगदानंद सिंह के हाथ में सौंपी गई है। इस साल हुए संगठनात्मक चुनाव के पूर्व भी राजद का नेतृत्व सिंह के ही जिम्मे था। इस कारण इस चुनाव में अध्यक्ष के बदलाव की उम्मीद थी।
वैसे, लालू प्रसाद के अस्वस्थ होने और तेजस्वी की पार्टी में बढ़ी सक्रियता के बाद राजद ए टू जेड की बात करती है। तेजस्वी कई बार इसे लेकर सार्वजनिक बयान भी देते रहे हैं।
यही स्थिति जदयू की भी है। नीतीश कुमार की राजनीति शुरू से ही पिछड़े और अति पिछड़ों तथा दलितों के इर्द गिर्द घूमती रही है।
पिछले वर्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को जदयू ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था। इस बार चर्चा थी कि राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी अन्य जाति से बनाया जाएगा। इस पद पर बदलाव के संकेत मिल रहे थे और उपेंद्र कुशवाहा का नाम भी सामने आया था। लेकिन एक बार फिर ललन सिंह को ही नीतीश कुमार का आशीर्वाद मिला और पार्टी ने सिंह को पार्टी की कमान सौंप दी।
इधर, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी सवर्ण जाति से आने वाले मदन मोहन झा थे। कांग्रेस ने झा को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर भूमिहार जाति से आने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी। हालांकि इसे लेकर कांग्रेस में नाराजगी भी दिख रही है।
वैसे, कांग्रेस के आसित नाथ तिवारी कहते हैं कि कांग्रेस कभी जात -पात की राजनीति नहीं की है। कांग्रेस काम करने वाले कार्यकतार्ओं और नेताओं को पद देकर सम्मान देती है।
इधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। माना जा रहा है कि भाजपा भी बहुत जल्द ही किसी दूसरे नेता को प्रदेश का दायित्व सौंप सकती है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि भाजपा भी बिहार का नेतृत्व किसी सवर्ण को सौंपती है या किसी और को अध्यक्ष बनाती है।
--आईएएनएस
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