पटाखों जलाते समय बरते सावधानी, नहीं तो आंखों को हो सकता है ये नुकसान

दिवाली का त्योहार पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता हैं। पटाखों की गूंज और रोशनी से यह त्योहार धमाकेदार हो जाता हैं। हांलाकि पटाखें ना जलाने में ही समझदारी हैं क्योंकि यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ ही आपको भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। खासतौर से पटाखों का धुआं
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पटाखों जलाते समय बरते सावधानी, नहीं तो आंखों को हो सकता है ये नुकसान

दिवाली का त्योहार पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता हैं। पटाखों की गूंज और रोशनी से यह त्योहार धमाकेदार हो जाता हैं। हांलाकि पटाखें ना जलाने में ही समझदारी हैं क्योंकि यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ ही आपको भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। खासतौर से पटाखों का धुआं आपको आंखों कू रोशनी छीन सकता हैं। पटाखों के धुंए से आंखों में जलन होती हैं और कई आंसू आने लगते हैं। ऐसे में पटाखे जलाते समय सावधानी बरतना बहुत जरूरी होता हैं। आज हम आपके लिए इससे जुड़ी जानकारी लेकर आए हैं जो आपकी आंखों को पटाखे के धुंए से होने वाले नुकसान से बचाएगी।

पटाखों जलाते समय बरते सावधानी, नहीं तो आंखों को हो सकता है ये नुकसान
डॉ. विमलेश शर्मा का कहना है कि दिवाली पर पटाखे, फुलझडिय़ां जलाना हमारी वर्षों पुरानी परम्परा है। पटाखे की आवाजों, चमक व खुशी कुछ ही पल में खत्म हो जाती है। लेकिन उससे होने वाला प्रदूषण काफी समय तक रहता है। ऐसे में बच्चों और बुजुर्गो व श्वास रोगियों पर इस प्रदूषण का बहुत बुरा असर पड़ता है। हमें बिना धुएं वाले पटाखे जलाने चाहिए। मास्क लगाकर पटाखे जलाये। बच्चों का पटाखे न जलाने दे बल्कि पटाखे जलाने में बड़ों की मदद ले।

आइये जानते है दिवाली प्रदूषण के मुख्य कारक-

सल्फर डाई ऑक्ससाइड, लैड, मैग्रिशियम, नाइट्रेट जो कि पटाखों के मुख्य तत्व है, अनके सांस संबंधी रोगों का कारण हो सकते है। पटाखें बहुत वायु प्रदूषण करते है व ग्लोबल वार्मिग का बड़ा कारण है। इसके अलावा पटाखों की तीव्र आवाज से ध्वनि प्रदूषण होता है। 90 डेसीबल से ऊपर की आवाज से नर्वस ब्रेकडाउन व बहरापन हो सकता है।
पटाखों से आकस्मिक चोटें जैसे जलाना या शरीर के किसी अंग जैसे आंख आदि में पटाखों से चोट पहुंच सकती है। यहां तक की आंख की चोट से अंधापन भी हो सकता है। दिवाली के बाद सुबह-सुबह केमिकल युक्त चारों तरफ दिखने वाली कूड़ा है। दिवाली में पटाखे जलाना सीधे-सीधे पैसों में आग लगाने जैसा ही है। कितने घरों में अंधेरा है व खाने का भोजन नहीं है। इन पैसों से हम ऐसे लोगों की मदद कर सकते है। यही मानवता है व सच्ची दिवाली है।