देशद्रोह कानून: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए बुधवार तक का समय दिया

नई दिल्ली, 10 मई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से राज्य सरकारों को यह निर्देश जारी करने पर विचार करने के लिए कहा कि जब तक कि प्रावधान की समीक्षा की प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती, तब तक भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के देशद्रोह के प्रावधान के संचालन को स्थगित रखा जाए।
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देशद्रोह कानून: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए बुधवार तक का समय दिया नई दिल्ली, 10 मई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से राज्य सरकारों को यह निर्देश जारी करने पर विचार करने के लिए कहा कि जब तक कि प्रावधान की समीक्षा की प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती, तब तक भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के देशद्रोह के प्रावधान के संचालन को स्थगित रखा जाए।

शीर्ष अदालत ने केंद्र को इस मामले में अपने फैसले के बारे में सूचित करने के लिए 24 घंटे का समय दिया।

जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि मामले लंबित हैं और हनुमान चालीसा के पाठ पर राजद्रोह कानून के दुरुपयोग पर अटॉर्नी जनरल की दलीलों का हवाला दिया।

पीठ ने कहा कि जब तक सरकार देशद्रोह कानून की फिर से जांच की प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेती, क्या वह राज्य सरकारों को कानून के संचालन को स्थगित रखने का निर्देश जारी कर सकती है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि लोगों को देशद्रोह कानून के दुरुपयोग से बचाना जरूरी है।

बता दें कि केंद्र ने इससे पहले सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उसने देशद्रोह या राजद्रोह कानून के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है। सरकार ने देश के औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून का बचाव किया था और सुप्रीम कोर्ट से इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा था।

सुप्रीम कोर्ट में दायर नए हलफनामे में केंद्र ने कहा, आजादी का अमृत महोत्सव (स्वतंत्रता के 75 वर्ष) की भावना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ²ष्टि में, भारत सरकार ने धारा 124ए, देशद्रोह कानून के प्रावधानों का दोबारा से निरीक्षण और पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है।

सरकार ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं के आधार पर मामले में फैसला करने से पहले सुप्रीम कोर्ट से समीक्षा की प्रतीक्षा करने का आग्रह भी किया।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि दो चिंताएं हैं - लंबित मामलों का क्या (जहां लोगों पर इस कानून के तहत आरोप लगाए जाते हैं)? दूसरा, भविष्य में धारा 124ए को लागू करना। पीठ ने मेहता से मामले में निर्देश लेने को कहा और मामले की अगली सुनवाई बुधवार को तय की। पीठ ने केंद्र से धारा 124ए के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए राज्यों को दिशानिर्देश जारी करने पर विचार करने को कहा।

सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि महात्मा गांधी ने इस धारा को सरकार के विरोध को शांत करने का सबसे शक्तिशाली हथियार बताया था। मेहता ने तर्क दिया कि दंडात्मक प्रावधान को निलंबित करना खतरनाक होगा। सिब्बल ने दलील दी कि जब तक सरकार कानून की दोबारा जांच नहीं करती, तब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। न्यायमूर्ति कांत ने मेहता से पूछा कि क्या सरकार राज्यों से कह सकती है, क्योंकि वह धारा 124 ए का उपयोग नहीं करने के लिए कानून की फिर से जांच कर रही है। मेहता ने कहा कि उन्हें इस मामले में निर्देश देना होगा।

शीर्ष अदालत इस बात पर दलीलें सुन रही थी कि क्या एक बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है, जैसा कि केदार नाथ सिंह के फैसले (1962) में, पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने इसे पढ़ने के बाद धारा को बरकरार रखा था।

शीर्ष अदालत मेजर जनरल एस. जी. वोम्बटकेरे (सेवानिवृत्त) और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें धारा 124ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, जिसमें अधिकतम आजीवन कारावास की सजा है।

--आईएएनएस

एकेके/एएनएम