छत्तीसगढ़ के किसान उगा रहे टाऊ की फसल, जो कई बीमारियों के लिए है मददगार, जमकर कमा रहे मुनाफा

छत्तीसगढ़ के शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में शुरूआती तौर पर तिब्बती शरणार्थियों द्वारा उगाई जाने वाली टाऊ की फसल यहां की आबो-हवा रास आने के कारण अब स्थानीय किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई है, जो ब्लड प्रेशर कम करने में मददगार साबित होगी। यह आम कुकीज की तरह शरीर में वसा नहीं
 | 
छत्तीसगढ़ के किसान उगा रहे टाऊ की फसल, जो कई बीमारियों के लिए है मददगार, जमकर कमा रहे मुनाफा

छत्तीसगढ़ के शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में शुरूआती तौर पर तिब्बती शरणार्थियों द्वारा उगाई जाने वाली टाऊ की फसल यहां की आबो-हवा रास आने के कारण अब स्थानीय किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई है, जो ब्लड प्रेशर कम करने में मददगार साबित होगी। यह आम कुकीज की तरह शरीर में वसा नहीं बढ़ाती, बल्कि इसमें मौजूद प्रोटीन और आयरन सेहत को बेहतर बनाने में कारगर हैं। यह कुकी टाऊ (कुट्टू) के आटे से तैयार की जा रही है। टाऊ की खेती सरगुजा संभाग के पहाड़ी इलाकों में की जा रही है। पूरे संभाग के करीब 4 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है। अकेले मैनपाट में ही 1600 हेक्टेयर में इसकी खेती की जा रही है। टाऊ का आटा ही अब तक बाजार में मौजूद था। अब इससे सेहतमंद कुकीज बनाकर एक नया प्रोडक्ट किसानों की आय बढ़ाने का भी काम करेगा।

छत्तीसगढ़ के किसान उगा रहे टाऊ की फसल, जो कई बीमारियों के लिए है मददगार, जमकर कमा रहे मुनाफा

कुकीज में हैं ये गुण

मैनपाट में टाऊ की पैदावार आठ से दस क्विटल प्रति हेक्टेयर होती है। स्थानीय व्यापारियों द्वारा किसानों से टाऊ की खरीदी 3500 से 4000 रूपये प्रति क्विटल की दर से खरीदी की जाती है। इससे तैयार आटा दिल्ली एवं अन्य महानगरों में टाऊ (कुट्टू) का आटा के नाम से 150 से 200 रूपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है। यह आटा व्रत एवं उपवास के दौरान फलाहार के रूप में उपयोग किया जाता है। टाऊ को बक व्हीट के नाम से भी जाना जाता है। प्रोटीन, ऐमिनो ऐसिड्स, विटामिन्स, मिनरल्स, फाइबर एवं एन्टी ऑक्सिडेन्ट प्रचुर मात्रा में होने के कारण टाऊ काफी पौष्टिक खाद्य माना जाता है। इसका प्रोटीन काफी सुपाच्य होता है और इसमें ग्लुटेन नहीं पाया जाता। इसमें अनेक औषधीय गुण भी पाए जाते हैं जिसकी वजह से अनेक बीमारियों से बचाव में यह उपयोगी है। यह हृदय रोग, डायबिटीज, कैन्सर और लिवर के लिए फायदेमंद है। यह कई खतरनाक रोगों से लडने में भी फयदेमंद है. इसके छिलकों का उपयोग मेडिकेटेड गद्दों और तकियों के निर्माण में होता है।

उपवास में खाने के काम आता है इसका आटा

यह एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग बड़े पैमाने पर जापानी और चीनी अपने दैनिक भोजन में करते रहे हैं। इसके साथ ही जापानी पक्षियों के चारे के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है। भारत में टाऊ की फसल को फलाहारी भोजन माना जाता है और उपवास के दौरान इसका आटा खाया जाता है। मैनपाठ और पंडरापाठ में उगाए जाने वाला टाऊ यहां के किसानों की आए का प्रमुख जरिया है. यहां से यह फसल जापान को निर्यात की जाती है। आज कल मोमोस नामक फास्ट फूड भी बाजार में काफी चलन में आया है। इसे बनाने के लिए भी टाऊ के आटे का इस्तेमाल होता है।

छत्तीसगढ़ के किसान उगा रहे टाऊ की फसल, जो कई बीमारियों के लिए है मददगार, जमकर कमा रहे मुनाफा

ठंड से फसल को हो रहा फायदा

सर्दी के मौसम में 1 से 2 डिग्री तक नीचे गिरने वाला पारा और भारी मात्रा में होने वाला हिमपात इस फसल के लिए आदर्श होता है। अनुकूल परिस्थितियों ने किसानों को इस फसल की ओर आकर्षित किया है। यहां से मौनपाट गए कुछ ग्रामीण किसानों ने एक प्रयोग के तौर पर इस फसल का प्रयोग किया है। अच्छी फसल के पकने पर साल दर साल टाऊ फसल के रकबे में भी बढ़ोतरी हुई है। फिलहाल जिले में 2 हजार एकड़ में टाऊ की फसल होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इस फसल पर कीट व्याधियों का असर भी काफी कम होता है।

टाऊ की तरफ आकर्षित हो रहे सैलानी

टाऊ के फूल पंडरापाठ और मैनपाठ की पहाडय़िों को और भी खूबसूरत बना देते हैं। दूर-दूर तक खेतों में फैली हुई इसकी फसल में खिले खूबसूरत फूल यहां आने वाले सैलानियों को बेहद आकर्षित करते हैं। ये फलाहारी आटे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यहां 30 रूपये किलों की दर से खरीदे जाना वाला टाऊ कुट्टू का आटे का फलाहारी आटा बनकर 200 रूपये किलों में बिकता है।

छत्तीसगढ़ में टाऊ

जानकारों के मुताबिक करीब 4 से 5 दशक पहले तिब्बती शरणार्थियों को छत्तीसगढ़ के मैनपाट में बसाया गया। ऊंचाई पर होने वाली फसल टाऊ को यह वर्ग अपने साथ सांस्कृतिक विरासत के तौर पर लेकर छत्तीसगढ़ आया था। तिब्बत की तरह मैनपाट का वातावरण और जलवायु होने के कारण तिब्बतियों का यहीं मन लग गया। अब इनसे सीखकर यहां के आदिवासी और यादव समुदाय के किसान भी टाऊ की खेती कर रहे हैं। अब तक इसका आटा और दाने ही बेचे जा रहे थे। ज्यादातर फायदा इसे बाहरी राज्यों में बेचने वाले बिचौलियों को मिल रहा था। कुकीज के प्रयोग से अब किसानों को बेहद उम्मीदें हैं।