तालिबान शासन के तहत अनिश्चित भविष्य से भयभीत अफगानिस्तान का हजारा समुदाय

काबुल, 11 सितम्बर (आईएएनएस)। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद पहली बार काबुल के बाहरी इलाके में शुक्रवार को हजारों की संख्या में हजारा नमाजी नमाज अदा करने के लिए मस्जिदों में जमा हुए।
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तालिबान शासन के तहत अनिश्चित भविष्य से भयभीत अफगानिस्तान का हजारा समुदाय काबुल, 11 सितम्बर (आईएएनएस)। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद पहली बार काबुल के बाहरी इलाके में शुक्रवार को हजारों की संख्या में हजारा नमाजी नमाज अदा करने के लिए मस्जिदों में जमा हुए।

शिया संप्रदाय से संबंधित हजारा समुदाय को पहले तालिबान और दाएश आतंकवादी समूहों द्वारा शिया मुस्लिम होने के कारण सताया गया, मार डाला गया और जातीय रूप से उनका सफाया करने के लिए एक पूरा अभियान चलाया गया।

हालांकि मौजूदा और कथित तौर पर कुछ उदारवादी नई तालिबान सरकार के साथ, वे थोड़ा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, लेकिन सुरक्षा की यह भावना तब एक भय में बदल जाती है, जब उन्हें अतीत के दर्दनाक दिन याद आते हैं। समुदाय के बीच भय अभी भी खत्म नहीं हुआ है और वे अतीत को याद करते हुए अपने वर्तमान और भविष्य के बारे में अनिश्चित हो जाते हैं।

हजारा समुदाय अतीत में न केवल तालिबान, बल्कि इस्लामिक स्टेट (आईएस) गुटों के निशाने पर रहा है। तालिबान की नवगठित अंतरिम सरकार के साथ, हजारा समुदाय के हजारों लोगों को उन्हें कैद किए जाने और उनका जातीय तौर पर सफाया किए जाने का डर है, क्योंकि तालिबान नेतृत्व में कट्टर आतंकवादी, पश्तून जातीयता के पुराने रक्षक शामिल हैं।

हजारा समुदाय के एक स्थानीय हसनजादा ने कहा, यह काफी हद तक एक ही जातीयता से बना है। तालिबान सरकार पर पश्तूनों का वर्चस्व है। हम हजारा की कोई भागीदारी नहीं देख रहे हैं, जो एक बड़ी चिंता है।

हजारा समुदाय में देश के शिया अल्पसंख्यक शामिल हैं, जबकि तालिबान नेतृत्व में इस्लाम के कट्टर सुन्नी संप्रदाय शामिल हैं, जो अतीत में 1990 के दशक में अपने अंतिम शासन के दौरान शियाओं के प्रति बर्बर थे।

हजारा समुदाय अपने समुदाय पर देश के सबसे हिंसक हमलों में से एक को नहीं भूला है, जब रैलियों पर बमबारी की गई थी, अस्पतालों को निशाना बनाया गया था और समुदाय पर घात लगाकर हमले किए गए थे।

हजारा समुदाय पर सबसे हालिया हमला इस साल जून के दौरान हुआ था, जब दाएश से जुड़े एक आत्मघाती हमलावर ने एक स्कूल को निशाना बनाया था और सैकड़ों लोगों की जान ले ली।

आज के समय में हजारा तालिबान के नेतृत्व वाले सुरक्षा बलों को देखकर डर जाते हैं, जो अब अफगानिस्तान की सड़कों पर एक सामान्य ²श्य है।

एक मस्जिद के इमाम अब्दुल कादिर अलेमी ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि अफगानिस्तान के लोग एक समावेशी सरकार चाहते हैं, जिसमें सभी जातियों, सभी धर्मों के अनुयायियों और समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व हो।

हजारा समुदाय के लिए एक और बड़ी चिंता सरकारी कार्यालयों से बहिष्कार है, क्योंकि तालिबान के अधिग्रहण के बाद से उनमें से कई बेरोजगार हो गए हैं और वर्तमान तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल होने की कोई उम्मीद नहीं है।

मस्जिद में एक शिया उपासक सुलेमान ने कहा, ऐसे कई लोग हैं जो सरकार के लिए काम करते थे। वे सभी अब बेरोजगार हो गए हैं। बहुत चिंता कायम है। ऐसा नहीं है कि तालिबान हमें मार रहे हैं, लेकिन इस तरह घुट-घुटकर जीने से मरना बेहतर है।

तालिबान शासन के तहत शिया समुदाय के लिए आजीविका बनाए रखना एक और बड़ी चुनौती बन गई है। उनका कहना है कि उन्होंने अभी तक तालिबान द्वारा अपने समुदाय के लिए कुछ भी बुरा नहीं देखा है, मगर बुनियादी खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें, कई समुदाय के सदस्यों की बेरोजगारी उन्हें भुखमरी की ओर धकेल रही हैं।

सुलेमान ने सवाल पूछते हुए कहा, हमने तालिबान की ओर से कुछ भी बुरा नहीं देखा है, लेकिन लोगों के लिए कोई काम नहीं है। हमें अपनी भूख के बारे में क्या करना चाहिए।

--आईएएनएस

एकेके/एएनएम