Pirul Employment - उत्तराखंड में अब 50 रुपए किलो बिकेगा पिरूल, CM धामी ने कहा 50 करोड़ का बनेगा कॉर्पस फंड

 

Utility of Pirul Pine Tree - उत्तराखंड में  हर साल जंगलों में आग लगना आम बात है, इस साल भी वनाग्नि के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. दरअसल वनों में आग लगने की मुख्य वजह पिरूल को माना जाता है. ऐसे में अब सरकार जंगलों में लगी आग को रोकने के लिए 'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' मिशन पर कार्य कर रही है. उत्तराखंड सरकार ने पिरूल कलेक्शन का मूल्य तीन रुपए प्रति किलो से बढाकर 50 रुपए पर KG करने जा रही है. जिससे लोग पिरूल इक्कठा कर रोजगार भी पा सकते हैं. 

<a href=https://youtube.com/embed/itPp1kEH3Yo?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/itPp1kEH3Yo/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" title="YouTube video player" width="560">
CM धामी ने X पर पोस्ट करते हुए लिखा - 
पिरूल की सूखी पत्तियां वनाग्नि का सबसे बड़ा कारण होती हैं। वनाग्नि को रोकने के लिए सरकार 'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' मिशन पर भी कार्य कर रही है। इस मिशन के तहत जंगल की आग को कम करने के उद्देश्य से पिरूल कलेक्शन सेंटर पर ₹50/किलो की दर से पिरूल ख़रीदा जायेगा। इस मिशन का संचालन पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा किया जाएगा इसके लिए ₹50 करोड़ का कार्पस फंड पृथक रूप से रखा जाएगा। 

लिहाजा, उत्तराखण्ड वन सम्पदा के क्षेत्र में समृद्ध तो है ही, साथ ही यहां चीड़ के वन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. उत्तराखंड के 71 फीसदी वन क्षेत्रों में 3.43 लाख हैक्टेयर चीड़ के जंगलों की हिस्सेदारी है। राज्य में 500 से 2200 मीटर ऊॅचाई वाले क्षेत्रों में चीड़ के वृक्ष बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं, चीड़ के पेड़ों की पत्तियों को पिरूल नाम से जाना जाता है. चीड़ आछयादित वनों से ग्रीष्मकालीन सीजन में लगभग 20 लाख टन से अधिक पिरूल गिरता है. 20 से 25 सेमी लम्बे नुकीले सूखे पत्ते अत्यन्त ज्वलनशील होते हैं. जो तेजी से आग पकड़ लेते हैं, पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि के मुख्य कारणों में पिरूल भी प्रमुख कारण है, जिससे हर साल कई हेक्टेयर जंगल वनाग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं.


नवीन पाइनैक्स ने पिरूल से रेशा तैयार करने की बनाई थी योजना - 
सन 1970 के दशक में नैनीताल जिले के कैंची नामक स्थान में नवीन पाइनैक्स नाम से नवीन नाम के एक उद्यमी ने पिरूल से रेशा तैयार कर वस्त्र उद्योग में इसका इस्तेमाल करने की पहल की थी। कुछ महीनों तक नवीन पाइनैक्स ने स्थानीय लोगों से पिरूल एकत्र करवाकर इस दिशा में काम भी किया लेकिन इस पाइलट प्रोजैक्ट को उत्पादन शुरू करने से पूर्व ही बन्द करना पड़ा। इसके पीछे शासन स्तर की उदासीनता रही या उद्यमी की अपनी कोई परेशानी, लेकिन इस दिशा में भविष्य में कोई प्रोजैक्ट शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।  यकीकन एक बार फिर प्रदेश में पिरूल से बनाए जाने वाले उत्पादों के लिए उद्यम लगाया जाता है तो, इससे जंगल तो बचेंगे ही इसके अलावा राज्य की आर्थिकी भी मजबूत होगी, साथ ही पहाड़ों से हो रहा पलायन रुकेगा और लोग रोजगार से जुड़ पाएंगे। 

 

Tags - उत्तराखंड पिरूल, उत्तराखंड पिरूल रोजगार, Uttarakhand Pirul, Pirul Uttarakhand Employment, Utility of Pirul Pine Tree, CM Pushkar Singh Dhami Launches 'Pirul Lao-Paise Pao' Drive, उत्तराखंड में कितने रुपए किलो बिकेगा पिरूल, Dhami government increased price of Pirul Rs 50.