Ghee Fastival Uttarakhand : क्या है घी संक्रांति - घी त्यार का महत्त्व, जानिए इस दिन क्यों जरुरी खाना पड़ता है घी
By : Satakshi Mishra
Ghee Fastival Uttarakhand - उत्तराखंड अपनी संस्कृति और परम्पराओं के लिए देश दुनिया में जाना जाता है। देवभूमि के पर्व और त्यौहार अपनी खास पहचान रखते हैं। जिनको मनाने के पीछे कुछ न कुछ पौराणिक मान्यता और प्रकृति का संदेश देने वाला उद्देश्य होता है। ऐसा ही एक अनोखा और लजीज पकवानों का पर्व है, घी संक्रांति। घी संक्रांति (Ghee Sankranti Uttrakhand) जिसे लोग घी त्यार या (ओलगिया) के नाम भी जानते हैं, परंपरागत मान्यता है कि इस दिन घर के सभी लोग घी का सेवन अवश्य करते हैं, जो इस दिन घी नहीं खाता, उसे अगले जन्म में गनेल (घोंघे) के रूप में पैदा होना पड़ता है।
खासतौर पर यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के आरम्भ होने पर मनाया जाता है, यह परंपरा चंद राजाओ के समय से चली आ रही है, इस दिन से सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, लिहाजा वर्षा ऋतू का प्रकोप भी इस दिन से धीरे - धीरे कम होने लगता है, यह त्योहार भी लोकपर्व हरेले की तरह ही ऋतु आधारित है, जहाँ हरेला बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक है, तो वहीं घी त्यार फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाता है। इस दिन पहाड़ में इष्ट देवी - देवताओं को नई फसलों को चढ़ाया जाता है घी त्यार के दिन एक दूसरे को दूध, दही और फल सब्जियों के उपहार भेंट व बांटे जाते हैं। इस दिन अरबी के पत्तों की सब्जी बनाई जाती है। सर्वोत्तम अरबी के पत्ते और मौसमी फल सब्जियां और फल अपने कुल देवताओं को चढ़ाई जाती है। उसके बाद गांव के लोगो के पास उपहार लेकर जाते हैं। फिर रिश्तेदारों को दिया जाता है।
tags :-: when was ghee tyar celebrated ,uttrakhand festival , uttrakhand most popular festival ,how many festival in uttrakhand ,what is the important of ghee tyar ,why was ghee tyar festival celebrated ,history of ghee tyar