बरेली: गर्भवती की हालत बिगड़ता देख, नहीं किया कोरोना रिपोर्ट का इंतजार सर्जरी कर बचाई मरीज की जान

न्यूज टुडे नेटवर्क। उतारो मुझे जिस क्षेत्र में। सर्वश्रेष्ठ कर दिखाउंगी।। औरों से अलग हूं दिखने में। कुछ अलग कर के ही जाउंगी”… यह पंक्तियां महिला जिला अस्पताल कि स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शैव्या के व्यक्तित्व को चरितार्थ करती हैं, कोरोना काल में अपनी 1 साल के बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर को कोरोना संक्रमण से बचाते
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बरेली: गर्भवती की हालत बिगड़ता देख, नहीं किया कोरोना रिपोर्ट का इंतजार सर्जरी कर बचाई मरीज की जान

न्यूज टुडे नेटवर्क। उतारो मुझे जिस क्षेत्र में। सर्वश्रेष्ठ कर दिखाउंगी।। औरों से अलग हूं दिखने में। कुछ अलग कर के ही जाउंगी‌”…
यह पंक्तियां महिला जिला अस्पताल कि स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शैव्‍या के व्यक्तित्व को चरितार्थ करती हैं, कोरोना काल में अपनी 1 साल के बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर को कोरोना संक्रमण से बचाते हुए , बिना डरे ही लगभग 80 से 100 कोरोनापॉजिटिव गर्भवती महिलाओं का इलाज किया। जब इनके पति को भी कोराना हो गया था तो भी बिना छुट्टी लिए अपनी नैतिक और सामाजिक, जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही थीं। यही नहीं इन्होने ऐसी मह‍िलाओं का भी इलाज किया जो कॉविड संक्रमण से पीड़ित थीं और उनकी डिलीवरी का क्रिट‍िकल टाइम में निजी अस्पताल से सरकारी अस्पताल भेज दिया गया था। तब भी अपनी जान की परवाह किये बिना इन्होने उनका ऑपरेशन किया और जच्चा – बच्चा को नई ज़िन्दगी का तोहफा दिया । अंतरराष्ट्रीय पर इन्‍हें और इनके जज्‍बे को सलाम।

डॉ. शैव्या ने कहा कोरोना की शुरुआत में यह बीमारी सबके लिए नई थी और इसकी कोई निश्चित गाइडलाइन नहीं आई थी फिर भी मेडिसिन की पढ़ाई का लाभ मुझे हमेशा मिला और सरकार के निर्देशों के अनुसार ही मरीजों का इलाज करना शुरू कर दिया था । अगस्त में मेरे पति डॉ गौरव मिश्रा की कोरोना जांच की गई जो कि पॉजिटिव आई। जिसके बाद करीब 30 अगस्त तक उन्हें एक होटल में आइसोलेशन में रखा गया | वह बहुत ही मुश्किल समय था क्योंकि अस्पताल में भी कोरोना पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं का आना जारी था और गर्भवती महिलाओं के साथ उनकी नन्ही जान को बचाने की जिम्मेदारी थी। इस महामारी के दौरान अस्पताल से छुट्टी का सवाल ही नहीं उठता था। वही घर में 1 साल का बेटा, 4 साल की बेटी बुजुर्ग सास मंजू मिश्रा और ससुर ए के मिश्रा को संक्रमण से बचाने के साथ-साथ उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी मेरी ही थी। मजबूरी के कारण घर में एक मेड सरोज को थोड़े दिन के लिए रखा था। जो कि बच्चों की देखभाल करती थी लेकिन सब का खाना बनाने की जिम्मेदारी मैंने ही ली थी

उन्होंने बताया सितंबर में एक गर्भवती महिला को अस्पताल में भर्ती किया गया जिसे एक प्राइवेट अस्पताल से सरकारी अस्पताल रेफर कर दिया गया था क्योंकि उस महिला के घर वाले 50 हजार रुपए देने की हालत में नहीं थे। गर्भवती ने यहां अस्पताल में अपने कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी नहीं दी थी। महिला की कंडीशन को देखते हुए उसे आइसोलेशन में रखा गया और मैंने उसका सिजेरियन किया। उसने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया और दूसरे दिन रिपोर्ट आने पर पता चला कि वह महिला कोरोना पॉजिटिव थी। वही कुछ दिन बाद एक महिला को अस्पताल में भर्ती किया गया जिसकी एक्टोपिक प्रेगनेंसी थी (जिसमें फेलोपियन ट्यूब में ही बच्चा बढ़ने लगता है और गर्भधारण का समय बढ़ने के साथ ही यह ट्यूब बस्ट हो जाती है और ब्लीडिंग के कारण किसी की भी जान जा सकती है) महिला की हालत ऐसी थी कि कोरोना टेस्ट रिपोर्ट के लिए रोका नहीं जा सकता था।

ऐसी हालत में महिला का टेस्ट करा कर उसका ऑपरेशन करना ही उचित समझा क्योंकि ब्लीडिंग होने के कारण उसका हीमोग्लोबिन 11 ग्राम से 8 ग्राम रह गया था| रात में ही ऑपरेशन कर उसकी जान बचाई गई और दूसरे दिन सुबह जब महिला की कोरोना रिपोर्ट आई तो वह कोरोना पॉजिटिव थी। लेकिन पूरी टीम बिना डरे ही उसकी देखभाल करती रही और किसी को भी कोरोना नहीं हुआ।
डॉ. शैव्या ने बताया कि कोरोना काल मैं और पूरा स्टाफ मास्क, हैंडवॉशिंग और सैनिटाइजर का प्रयोग सजगता से करते रहे। कोराना काल में महिला डॉक्टर ने अपनी सोच समझ और विश्वास से अपनी जान लगा दी।
“अब बदल गयी है ये पहचान
नारी की न साड़ी परिभाषा,
वाणी अभी भी मध्यम मधुर सी
पर कुछ कर गुजरने की है, प्रबल सी आशा”

चाहे जो भी मैं बन जाउं
गर्व से नारी ही कहलाउंगी,
चाहे युग कोई सा आये
मै ही जगत जननी कहलाउंगी”…